Thursday, January 24, 2019

बिहार में RJD नेता रघुवर राय की हत्या, तेजस्वी बोले- गुंडों को संभालिए नीतीश जी

बिहार के समस्तीपुर में विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता को निशाना बनाया गया है. आरजेडी नेता रघुवर राय की गोली मारकर हत्या कर दी गई है. आरजेडी नेता की हत्या से इलाके में माहौल गरमा गया है. आक्रोशित लोगों ने सड़क पर जाम लगा दिया है.

घटना समस्तीपुर के कल्याणपुर की है. जहां आरजेडी के प्रदेश महासचिव और पूर्व जिला परिषद उपाध्यक्ष रघुवर राय को गोली मार दी गई. गोली लगने के बाद उन्हें तुरंत दरभंगा के निजी अस्पताल में रेफर किया गया. लेकिन उन्हें नहीं बचाया जा सका.

मॉर्निंग वॉक के लिए निकले थे रघुवर राय

समस्तीपुर एसपी हरप्रीत कौर ने घटना की जानकारी देते हुए बताया कि हर दिन की तरह बुधवार सुबह भी रघुवार राय कल्याणपुर स्थित अपने आवास से मॉर्निंग वॉक के लिए बाहर निकले थे. मौसम खराब होने की वजह से आज वह कुछ देरी से वॉक के लिए निकले.

वॉक के दौरान एक सुनसान जगह पर घात लगाए बदमाशों ने उन पर फायरिंग शुरू कर दी. गोली मारते ही हमलावर मौके से फरार हो गए. जबकि बुरी तरह जख्मी आरजेडी नेता को उनके समर्थक सीधे दरभंगा लेकर गए. जहां इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया.

हत्या से आक्रोश

इस घटना से इलाके में काफी आक्रोश देखा जा रहा है. गुस्साए लोगों ने सड़क जाम कर अपना विरोध जताया. वहीं, आरजेडी विधायक शाहीन ने भी घटना पर दुख जताया.

तेजस्वी बोले- गुंडों को संभालिए नीतीश जी

अपनी पार्टी के नेता की हत्या पर बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी विधायक तेजस्वी यादव ने सख्त प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने बिहार में बढ़ते अपराध पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरा है. तेजस्वी ने कहा है कि नीतीश कुमार जी सत्ता संरक्षित गुंडों को संभालिए.

तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया, 'नीतीश कुमार जी, सत्ता संरक्षित गुंडों को संभालिए. किस बात और किस काम के गृहमंत्री बने कुर्सी से चिपक कर बैठे हैं? आपके द्वारा संरक्षित अपराधी रालोसपा और राजद के नेताओं की चुन-चुन कर हत्या कर रहे हैं, लेकिन आजतक आपकी जुबान का ताला नहीं खुला है. घोर निंदनीय..'

बता दें कि पिछले साल ही उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से जुड़े एक नेता की भी हत्या कर दी गई थी. कुशवाहा अब तेजस्वी यादव के साथ आ गए हैं. ऐसे में उन्होंने दोनों घटनाओं को लेकर नीतीश कुमार सरकार को घेरा है. आरजेडी नेता के अलावा बीती रात विभूतिपुर में एक किसान की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई.

Tuesday, January 15, 2019

मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की लड़कियां कहां और कैसी हैं? - ग्राउंड रिपोर्ट

मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड को उजागर हुए अब सात महीने से अधिक का वक्त हो चला है और ऐसे कई सवाल जवाब की तलाश में अब भी भटक रहे हैं.

शेल्टर होम की वो लड़कियां कहां गईं जिनके बारे में पीमसीएच में हुई मेडिकल जांच के बाद बिहार की मीडिया में 'गर्भवती होने की पुष्टि ' होने की ख़बरें छपी थीं?

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ (TISS) की वो रिपोर्ट जिसमें वहां रहने वाली बच्चियों के साथ यौन दुर्व्यवहार से लेकर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना की जानकारी दी गई थी, पिछले साल 26 मई को समाज कल्याण विभाग के निदेशक तक पहुंची.

विभाग द्वारा तत्काल कार्रवाई करते हुए 29 मई 2018 को बालिका गृह को खाली करा लिया गया और वहां रहने वाली सभी 44 बच्चियों को बेहतर देखभाल और सुरक्षा मुहैया कराने के लिए राज्य के दूसरे शेल्टर होम में शिफ़्ट कर दिया गया.

इनमें से 14 बच्चियों को बालिका गृह मधुबनी में, 14 को बालिका गृह मोकामा में और बाकी 16 लड़कियों को बालिका गृह, पटना भेजा गया था.

31 मई 2018 को समाज कल्याण विभाग के तत्कालीन सहायक निदेशक दिवेश शर्मा के बयान के आधार पर मुज़फ़्फ़रपुर महिला थाने में मामले में पहला एफ़आईआर दर्ज हुआ और पुलिस इसकी जांच में लग गई.

जो बातें अब तक मालूम हैं...
मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस ने 11 नामजद अभियुक्तों में से 10 को तुरंत गिरफ़्तार भी कर लिया. जिसमें मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर भी शामिल थे.

बाद में मामले की गंभीरता को देखते हुए और निष्पक्ष जांच का हवाला देकर बिहार सरकार ने बालिका गृह कांड की जांच का जिम्मा सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इनवेस्टिगेशन यानी सीबीआई को दे दिया.

सीबीआई ने 19 दिसंबर को विशेष पॉक्सो कोर्ट में मामले की चार्जशीट दायर कर दी है.

जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह में रहने वाली 44 में से 33 लड़कियों समेत कुल 102 गवाहों के बयानों और उनसे लिए गए साक्ष्यों के आधार पर 21 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए गए हैं.

सीबीआई की चार्जशीट कहती है कि इस मामले में अनुंसधान अभी भी जारी है. मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड का यह अब तक का सार है.

वैसे तो इन सात महीनों के दौरान इसके अलावा भी मामले में बहुत कुछ हुआ है. फिर चाहे वो समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का इस्तीफ़ा हो, या हाई कोर्ट से मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले से संबंधित ख़बरों के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक.

सुप्रीम कोर्ट से रोक हटाने का आदेश और अब सीबीआई की चार्जशीट के हवाले से बच्चियों पर होने वाली यातनाओं की कहानी अख़बारों की सुर्खियां बनी हुई हैं.

सवाल जिनके जवाब नहीं...
लेकिन, इन सात महीनों के दौरान एक बार भी ये बात नहीं उठी कि सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार उन 'सतायी हुई बच्चियों' का इन दिनों में क्या हुआ? वे अभी किस हाल में हैं?

क्या वे बच्चियां यातना से भरे उन दिनों को अब भूल चुकी हैं? उन बच्चियों का क्या हुआ जिनके 'गर्भवती होने की पुष्टि' की ख़बरें तब अख़बारों की हेडलाइन बनी थीं और आज भी इंटरनेट पर इसी हेडिंग के साथ उपलब्ध हैं? साथ ही सवाल ये भी कि सरकार ने उसके बाद उन 44 पीड़ित बच्चियों के लिया क्या किया?

मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के ऐसे ही तमाम अनसुलझे सवालों के साथ 10 जनवरी, दिन गुरुवार की सुबह क़रीब 11 बजे हम बालिका गृह, मधुबनी के मेन गेट के सामने खड़े थे.

एकदम से घने बसावट वाले मधुबनी के वार्ड 17 में स्थित सूरतगंज मोहल्ले की एक गली में 'हुसैन मंजिल' के मुख्य गेट पर लिखा था, 'बालिका गृह मधुबनी, सौजन्य- राज्य एवं बाल विकास संरक्षण समिति समाज कल्याण विभाग, बिहार पटना, संचालक- परिहार सेवा संस्थान.'

मधुबनी का ये वही बालिकागृह है जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर की पीड़ित 14 बच्चियों को लाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में बिहार सरकार ने जवाब दिया है, "पीड़ित बच्चियों की बेहतर देखभाल और सुरक्षा के लिए मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह से हटाकर मधुबनी के बालिका गृह ले जाया गया है."

मधुबनी के सूरतगंज की पतली और संकरी गली में, जिसके दोनों तरफ मकान एक दूसरे से बिल्कुल सटकर बने थे, बजबजाती नाली और चारो तरफ़ गंदगी का अंबार लगा था और सबसे अव्वल तो ये कि बालिका गृह के पीछे का घर और गृह के कैंपस की दीवार एक था.

इसके पहले की रिपोर्टिंग के दौरान मैं मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह भी जा चुका था. जिसको लेकर ये सवाल उठे थे कि आखिर सरकार ने ब्रजेश ठाकुर को वैसी जगह पर, वैसे परिवेश में और वैसी संरचना के साथ बालिका गृह चलाने की अनुमति कैसे मिल गई?

बालिका गृह मधुबनी के गेट पर खड़ा मैं कुछ देर यही सोचता रहा कि मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह से बेहतर देखभाल और सुरक्षा के नाम पर बच्चियों को यहां क्यों शिफ़्ट किया गया जबकि किसी नज़र से यह शेल्टर होम के लिए बनाए गए नियम-क़ायदों का पालन करता हुआ नहीं दिख रहा था. इसे एनजीओ परिहार सेवा संस्थान चला रही है.

यहां से मुज़फ़्फ़रपुर की एक पीड़िता लड़की के लापता होने का मामला भी दर्ज हुआ, जिसका आजतक कोई पता नहीं चल सका.

वहां मौजूद एक केयर टेकर महिला कर्मी ने हमसे पूछा, "किससे परमिशन लेकर आए हैं? अंदर आने के लिए आपको या तो बाल संरक्षण इकाई या फिर डीएम से परमिशन लेना होगा. और माफ़ करिएगा, हम कोई बात नहीं कर पाएंगे, यहां की सुप्रिटेंडेंट अभी नहीं हैं. आप उनसे फ़ोन पर बात कर लीजिए."

Monday, January 14, 2019

अश्वमेध में घोड़े कम पड़ जाएं तो खच्चर नहीं लाते- कुमार विश्वास की व्यंग्य शृंखला

कुंभ देख लिया महाकवि?’, हाजी पंडित ने चमकते हुए पूछा। मैंने हाजी को लताड़ा, ‘अमां हाजी, कैसे धर्म प्रबंधक हो! अभी कुंभ शुरू कहां हुआ है? हां, राजनीतिक पंडितों ने ज़रूर अभी से यूपी की अस्सी सीटों के जुगाड़ में डुबकी लगानी शुरू  कर दी है। महागठबंधन की छपाक-छपाक से लेकर अपने दल तक की छपर-छपर तक तरह-तरह की आवाज़ें गूंज रही हैं। कुछ स्विमिंग पूल के रसिया गंगाजी में कूद तो गए हैं, लेकिन असली इनफिनिटी पूल का विस्तार देखते ही गुडुप-गुडुप करने लगे हैं। अपनी लहर का दावा करने वाले कई पुराने लहरिये गंगा के बुलावे पर गंगाजी की धार में ही तख़्ती ढूंढते नज़र आ रहे हैं।’

हाजी ने पहली बार मुझे इतना सारा एक बार में बोलते हुए सुना था। बोले, ‘वो तो ठीक है महाकवि! लेकिन एक कुंभ तो दुबई में हो भी लिया।’ ‘तुम भी हाजी कभी-कभी भावनाओं में बह जाते हो! इवेंट मैनेजमेंट और राजनीति में फ़र्क़ होता है।’ हाजी को राजनीति सिखाने वाला मैं कौन होता था। सो हाजी ने पलटवार किया, ‘अच्छा! और जैसे तुमने पिछले पांच साल में देखा ही नहीं है कि इवेंट मैनेजमेंट के सहारे पटरी से उतरी राजनीति कैसे चलाई जाती है!’

मैंने भी हाजी से कम न पड़ने का इरादा कर लिया था, ‘पर उनकी भी कहां चल रही है हाजी! भाई लोगों को लगा कि एक साथ कई घोड़े निकाल दो तो विश्व-विजय जल्दी हो जाएगी। लेकिन अश्वमेध में घोड़े कम पड़ जाने का मतलब यह थोड़ी है कि खच्चरों को काम पर लगा दो! अब देख लो, पांच राज्यों में मिट्टी हुआ पथ जहां-तहां रुका पड़ा है!’ हाजी को बात पसंद आई। उन्होंने जोड़ा, ‘रथ तो रुका सो रुका महाकवि, मज़े की बात तो ये है कि बजाए घोड़े और खच्चर पहचानने के, बंदे लकड़ी के पहिये में पंक्चर ढूंढने में लगे हैं। मौके का फ़ायदा उठाकर विपक्ष भी मुहल्ले के बदमाश बच्चों की तरह परेशान रथाधीश पर कभी रफाल, तो कभी सीबीआई, तो कभी एससी-एसटी एक्ट के गोले बना-बनाकर फेंक रहा है।’

मैंने कहा, ‘ऐसे में तो भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल है हाजी। उधर बुआ-बबुआ इकठ्ठे हो गए, इधर कांग्रेस ने तो लगता है संजीवनी सूंघ ली है। शिव सेना ने तो लंबी वाली जीभ चिढ़ा दी। अब?’ हाजी बोले, ‘अब ये सिल्वर लाइनिंग इन द क्लाउड ढूंढ रहे हैं महाकवि- डूबते को तिनके का सहारा। हद तो ये है कि कल एक भाजपाई पूरे कॉन्फिडेंस से बोल रहा था कि देख लेना ममता दीदी हमारे साथ आएंगी।

मैंने पूछा कि ऐसा क्यों लगता है, तो बोला कि कल दीदी ने कहा कि सीबीआई मामले में मोदी जी ने लक्ष्मण रेखा पार कर ली है। लक्ष्मण का नाम लेकर ममता दीदी निश्चित रूप से राम मंदिर मामले में हमारा साथ देने का इशारा दे रही हैं।’ मैंने हंसी और आश्चर्य के मिश्रित भाव में पूछा, ‘हें! ये कौन सी बात हुई?’ हाजी भी हंसे। बोले, ‘ऐसा है महाकवि! जहां लॉजिक ख़त्म होता है, वहां से मैजिक शुरू हो जाता है। तो अब भाई साहब मैजिक की तलाश में हैं। उम्मीद पर दुनिया क़ायम है। बक़ौल हबीब सिद्दीक़ी,

Monday, January 7, 2019

चीन, एप्पल और ट्रंप: सात ताक़तें जो बदल देंगी दुनिया

दुनिया में हो रहे बदलावों का अध्ययन करने वाले लेखक जेफ़ देजाख़्दा मानते हैं कि 90 के दशक में सामने आई इंटरनेट तकनीक वो आख़िरी चीज़ थी जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था और इंसानी दुनिया को बदलकर रख दिया.

देजाख़्दा इस समय एक नई किताब 'विज़ुअलाइज़िंग चेंज - अ डेटा ड्रिवेन स्नैपशॉट ऑफ़ आवर वर्ल्ड' का संपादन कर रहे हैं. ये किताब दुनिया में हो रहे दीर्घकालिक बदलावों पर नज़र डालती है.

देजाख़्दा कहते हैं कि इंटरनेट ने दुनिया को उस तरह बदलकर रख दिया है जिस तरह 15वीं शताब्दी में निकोलस कोपरनिकस के ब्रह्मांड मॉडल ने दुनिया पर असर डाला था.

कोपरनिकस के इस मॉडल में ब्रह्मांड से जुड़ी उस सोच को चुनौती दी गई थी जिसके तहत ये माना जाता था कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में स्थित है.

लेकिन व्यापारिक मॉडलों, उपभोक्ताओं की मानसिकता में बदलाव और अंतरराष्ट्रीय राजनीति जैसे तत्व भी कई अहम बदलाव ला सकते हैं.

देजाख़्दा कहते हैं, "दुनिया बदलने वाली बयार किसी भी दिशा से आ सकती है और इसमें कोई शक नहीं है कि कल आने वाला तूफ़ान आज किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं जन्म ले रहा है."

देजाख़्दा और उनकी टीम के मुताबिक़, ये सात ताक़तें आने वाले दिनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल सकती हैं.

कई दशकों तक दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियों ने औद्योगिक स्तर पर उत्पादन करने से लेकर प्राकृतिक संसाधनों को हासिल करने की दिशा में काम किया.

अमरीकी कार निर्माता कंपनी फोर्ड, जनरल इलेक्ट्रिक और तेल क्षेत्र की कंपनी एक्सॉन ऐसी ही कुछ कंपनियों में शामिल हैं.

इसके बाद आर्थिक सेवाएं और टेलिकॉम क्षेत्र की कंपनियों का नंबर आया.

लेकिन अब सूचना क्रांति का दौर है. और दुनिया के शेयर बाज़ारों में सबसे ज़्यादा अहम कंपनियां तकनीक क्षेत्र की कंपनियां ही हैं.

साल 2018 की पहली तिमाही में एप्पल, गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट और टेनसेंट सबसे प्रभावशाली कंपनियां बनी रहीं. लेकिन पांच साल पहले पांच सबसे अहम कंपनियों की लिस्ट में केवल एप्पल ही शामिल थी.

चीन की आर्थिक अहमियत को लेकर पहले भी बात हो चुकी है. लेकिन देजाख़्दा चीन की आर्थिक और तकनीकी विकास की ओर ध्यान खींचना चाहते हैं.

चीन के कुछ शहरों का आर्थिक उत्पादन इतना ज़्यादा है कि वह कई देशों के आर्थिक उत्पादन पर भारी पड़ता है.

इस समय चीन में 100 से ज़्यादा शहरों में दस लाख से अधिक आबादी रहती है.

चीन की येंगत्सी नदी के किनारे बसे शहर शंघाई, सूजो, खांग्जो, वूशी, नेनटॉन्ग, नेनजिंग, चांगजो इसी विकास का उदाहरण हैं.

इन शहरों का भौतिक विकास इनके आर्थिक विकास के साथ समान रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है.

ये माना जाता है कि साल 2030 तक चीन अमरीका को पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी.

आने वाले कुछ दशकों में शहरी आबादी में तेज़ी से होती बढ़त वैश्विक अर्थव्यवस्था को बदलकर रख देगी.

सयुंक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, चीन और कई पश्चिमी देशों में जन्म दर में एक स्थिरता नज़र आएगी. वहीं, अफ़्रीकी और दूसरे एशियाई देशों में आबादी में बढ़ोतरी के साथ-साथ तेज़ी से शहरीकरण होता हुआ दिखेगा.

इससे ऐसे कई शहर अस्तित्व में आएंगे जहां रहने वालों की संख्या एक करोड़ से ज़्यादा होगी. यूएन के मुताबिक़, पिछले साल ऐसे शहरों की संख्या 47 थी.

अनुमान के मुताबिक़, इस सदी के अंत तक अफ़्रीका में 13 ऐसे शहर अस्तित्व में आएंगे जो कि न्यू यॉर्क सिटी से भी बड़े होंगे.