Monday, January 7, 2019

चीन, एप्पल और ट्रंप: सात ताक़तें जो बदल देंगी दुनिया

दुनिया में हो रहे बदलावों का अध्ययन करने वाले लेखक जेफ़ देजाख़्दा मानते हैं कि 90 के दशक में सामने आई इंटरनेट तकनीक वो आख़िरी चीज़ थी जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था और इंसानी दुनिया को बदलकर रख दिया.

देजाख़्दा इस समय एक नई किताब 'विज़ुअलाइज़िंग चेंज - अ डेटा ड्रिवेन स्नैपशॉट ऑफ़ आवर वर्ल्ड' का संपादन कर रहे हैं. ये किताब दुनिया में हो रहे दीर्घकालिक बदलावों पर नज़र डालती है.

देजाख़्दा कहते हैं कि इंटरनेट ने दुनिया को उस तरह बदलकर रख दिया है जिस तरह 15वीं शताब्दी में निकोलस कोपरनिकस के ब्रह्मांड मॉडल ने दुनिया पर असर डाला था.

कोपरनिकस के इस मॉडल में ब्रह्मांड से जुड़ी उस सोच को चुनौती दी गई थी जिसके तहत ये माना जाता था कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में स्थित है.

लेकिन व्यापारिक मॉडलों, उपभोक्ताओं की मानसिकता में बदलाव और अंतरराष्ट्रीय राजनीति जैसे तत्व भी कई अहम बदलाव ला सकते हैं.

देजाख़्दा कहते हैं, "दुनिया बदलने वाली बयार किसी भी दिशा से आ सकती है और इसमें कोई शक नहीं है कि कल आने वाला तूफ़ान आज किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं जन्म ले रहा है."

देजाख़्दा और उनकी टीम के मुताबिक़, ये सात ताक़तें आने वाले दिनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल सकती हैं.

कई दशकों तक दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियों ने औद्योगिक स्तर पर उत्पादन करने से लेकर प्राकृतिक संसाधनों को हासिल करने की दिशा में काम किया.

अमरीकी कार निर्माता कंपनी फोर्ड, जनरल इलेक्ट्रिक और तेल क्षेत्र की कंपनी एक्सॉन ऐसी ही कुछ कंपनियों में शामिल हैं.

इसके बाद आर्थिक सेवाएं और टेलिकॉम क्षेत्र की कंपनियों का नंबर आया.

लेकिन अब सूचना क्रांति का दौर है. और दुनिया के शेयर बाज़ारों में सबसे ज़्यादा अहम कंपनियां तकनीक क्षेत्र की कंपनियां ही हैं.

साल 2018 की पहली तिमाही में एप्पल, गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट और टेनसेंट सबसे प्रभावशाली कंपनियां बनी रहीं. लेकिन पांच साल पहले पांच सबसे अहम कंपनियों की लिस्ट में केवल एप्पल ही शामिल थी.

चीन की आर्थिक अहमियत को लेकर पहले भी बात हो चुकी है. लेकिन देजाख़्दा चीन की आर्थिक और तकनीकी विकास की ओर ध्यान खींचना चाहते हैं.

चीन के कुछ शहरों का आर्थिक उत्पादन इतना ज़्यादा है कि वह कई देशों के आर्थिक उत्पादन पर भारी पड़ता है.

इस समय चीन में 100 से ज़्यादा शहरों में दस लाख से अधिक आबादी रहती है.

चीन की येंगत्सी नदी के किनारे बसे शहर शंघाई, सूजो, खांग्जो, वूशी, नेनटॉन्ग, नेनजिंग, चांगजो इसी विकास का उदाहरण हैं.

इन शहरों का भौतिक विकास इनके आर्थिक विकास के साथ समान रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है.

ये माना जाता है कि साल 2030 तक चीन अमरीका को पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी.

आने वाले कुछ दशकों में शहरी आबादी में तेज़ी से होती बढ़त वैश्विक अर्थव्यवस्था को बदलकर रख देगी.

सयुंक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, चीन और कई पश्चिमी देशों में जन्म दर में एक स्थिरता नज़र आएगी. वहीं, अफ़्रीकी और दूसरे एशियाई देशों में आबादी में बढ़ोतरी के साथ-साथ तेज़ी से शहरीकरण होता हुआ दिखेगा.

इससे ऐसे कई शहर अस्तित्व में आएंगे जहां रहने वालों की संख्या एक करोड़ से ज़्यादा होगी. यूएन के मुताबिक़, पिछले साल ऐसे शहरों की संख्या 47 थी.

अनुमान के मुताबिक़, इस सदी के अंत तक अफ़्रीका में 13 ऐसे शहर अस्तित्व में आएंगे जो कि न्यू यॉर्क सिटी से भी बड़े होंगे.

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