Tuesday, January 15, 2019

मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की लड़कियां कहां और कैसी हैं? - ग्राउंड रिपोर्ट

मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड को उजागर हुए अब सात महीने से अधिक का वक्त हो चला है और ऐसे कई सवाल जवाब की तलाश में अब भी भटक रहे हैं.

शेल्टर होम की वो लड़कियां कहां गईं जिनके बारे में पीमसीएच में हुई मेडिकल जांच के बाद बिहार की मीडिया में 'गर्भवती होने की पुष्टि ' होने की ख़बरें छपी थीं?

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ (TISS) की वो रिपोर्ट जिसमें वहां रहने वाली बच्चियों के साथ यौन दुर्व्यवहार से लेकर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना की जानकारी दी गई थी, पिछले साल 26 मई को समाज कल्याण विभाग के निदेशक तक पहुंची.

विभाग द्वारा तत्काल कार्रवाई करते हुए 29 मई 2018 को बालिका गृह को खाली करा लिया गया और वहां रहने वाली सभी 44 बच्चियों को बेहतर देखभाल और सुरक्षा मुहैया कराने के लिए राज्य के दूसरे शेल्टर होम में शिफ़्ट कर दिया गया.

इनमें से 14 बच्चियों को बालिका गृह मधुबनी में, 14 को बालिका गृह मोकामा में और बाकी 16 लड़कियों को बालिका गृह, पटना भेजा गया था.

31 मई 2018 को समाज कल्याण विभाग के तत्कालीन सहायक निदेशक दिवेश शर्मा के बयान के आधार पर मुज़फ़्फ़रपुर महिला थाने में मामले में पहला एफ़आईआर दर्ज हुआ और पुलिस इसकी जांच में लग गई.

जो बातें अब तक मालूम हैं...
मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस ने 11 नामजद अभियुक्तों में से 10 को तुरंत गिरफ़्तार भी कर लिया. जिसमें मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर भी शामिल थे.

बाद में मामले की गंभीरता को देखते हुए और निष्पक्ष जांच का हवाला देकर बिहार सरकार ने बालिका गृह कांड की जांच का जिम्मा सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इनवेस्टिगेशन यानी सीबीआई को दे दिया.

सीबीआई ने 19 दिसंबर को विशेष पॉक्सो कोर्ट में मामले की चार्जशीट दायर कर दी है.

जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह में रहने वाली 44 में से 33 लड़कियों समेत कुल 102 गवाहों के बयानों और उनसे लिए गए साक्ष्यों के आधार पर 21 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए गए हैं.

सीबीआई की चार्जशीट कहती है कि इस मामले में अनुंसधान अभी भी जारी है. मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड का यह अब तक का सार है.

वैसे तो इन सात महीनों के दौरान इसके अलावा भी मामले में बहुत कुछ हुआ है. फिर चाहे वो समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का इस्तीफ़ा हो, या हाई कोर्ट से मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले से संबंधित ख़बरों के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक.

सुप्रीम कोर्ट से रोक हटाने का आदेश और अब सीबीआई की चार्जशीट के हवाले से बच्चियों पर होने वाली यातनाओं की कहानी अख़बारों की सुर्खियां बनी हुई हैं.

सवाल जिनके जवाब नहीं...
लेकिन, इन सात महीनों के दौरान एक बार भी ये बात नहीं उठी कि सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार उन 'सतायी हुई बच्चियों' का इन दिनों में क्या हुआ? वे अभी किस हाल में हैं?

क्या वे बच्चियां यातना से भरे उन दिनों को अब भूल चुकी हैं? उन बच्चियों का क्या हुआ जिनके 'गर्भवती होने की पुष्टि' की ख़बरें तब अख़बारों की हेडलाइन बनी थीं और आज भी इंटरनेट पर इसी हेडिंग के साथ उपलब्ध हैं? साथ ही सवाल ये भी कि सरकार ने उसके बाद उन 44 पीड़ित बच्चियों के लिया क्या किया?

मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के ऐसे ही तमाम अनसुलझे सवालों के साथ 10 जनवरी, दिन गुरुवार की सुबह क़रीब 11 बजे हम बालिका गृह, मधुबनी के मेन गेट के सामने खड़े थे.

एकदम से घने बसावट वाले मधुबनी के वार्ड 17 में स्थित सूरतगंज मोहल्ले की एक गली में 'हुसैन मंजिल' के मुख्य गेट पर लिखा था, 'बालिका गृह मधुबनी, सौजन्य- राज्य एवं बाल विकास संरक्षण समिति समाज कल्याण विभाग, बिहार पटना, संचालक- परिहार सेवा संस्थान.'

मधुबनी का ये वही बालिकागृह है जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर की पीड़ित 14 बच्चियों को लाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में बिहार सरकार ने जवाब दिया है, "पीड़ित बच्चियों की बेहतर देखभाल और सुरक्षा के लिए मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह से हटाकर मधुबनी के बालिका गृह ले जाया गया है."

मधुबनी के सूरतगंज की पतली और संकरी गली में, जिसके दोनों तरफ मकान एक दूसरे से बिल्कुल सटकर बने थे, बजबजाती नाली और चारो तरफ़ गंदगी का अंबार लगा था और सबसे अव्वल तो ये कि बालिका गृह के पीछे का घर और गृह के कैंपस की दीवार एक था.

इसके पहले की रिपोर्टिंग के दौरान मैं मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह भी जा चुका था. जिसको लेकर ये सवाल उठे थे कि आखिर सरकार ने ब्रजेश ठाकुर को वैसी जगह पर, वैसे परिवेश में और वैसी संरचना के साथ बालिका गृह चलाने की अनुमति कैसे मिल गई?

बालिका गृह मधुबनी के गेट पर खड़ा मैं कुछ देर यही सोचता रहा कि मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह से बेहतर देखभाल और सुरक्षा के नाम पर बच्चियों को यहां क्यों शिफ़्ट किया गया जबकि किसी नज़र से यह शेल्टर होम के लिए बनाए गए नियम-क़ायदों का पालन करता हुआ नहीं दिख रहा था. इसे एनजीओ परिहार सेवा संस्थान चला रही है.

यहां से मुज़फ़्फ़रपुर की एक पीड़िता लड़की के लापता होने का मामला भी दर्ज हुआ, जिसका आजतक कोई पता नहीं चल सका.

वहां मौजूद एक केयर टेकर महिला कर्मी ने हमसे पूछा, "किससे परमिशन लेकर आए हैं? अंदर आने के लिए आपको या तो बाल संरक्षण इकाई या फिर डीएम से परमिशन लेना होगा. और माफ़ करिएगा, हम कोई बात नहीं कर पाएंगे, यहां की सुप्रिटेंडेंट अभी नहीं हैं. आप उनसे फ़ोन पर बात कर लीजिए."

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